08 December, 2017

A PRAGMATIC #ELECTION STRATEGY

मैं वे हिन्दू हूँ जो मार खाना जानता नहीं. परन्तु मेरा धर्म मुझे किसी निर्दोष को मारने देता नहीं. तो जो निर्दोष पर हिंसा करते हैं वे हिन्दू ही नहीं. मेरे राम वो मंदिर कभी पसंद करते जिसका रास्ता निर्दोषों के खून से लत पड़ा हो. गाँधी मुझे वहां पूजा करने देते

मंदिर बनकर रहेगा, और वो भी प्यार से. तभी तो वे अनोखा राम मंदिर कहलाने का पात्र होगा. वरना पत्थर, ईंट और चूने के मंदिर तो लाखों हैं मेरे देश में. भले चार दिन देर से बने, परन्तु बने ऐतिहासिक और मेरे धर्म की अंतरात्मा के अनुसार. विश्व उस से डरे नहीं, उस से प्यार करे. प्यार का धर्म है मेरा, भले राजनेत मुझे कुछ भी सिखाएं. मेरे मंदिरों की दीवारों पर अधिकतर प्यार की, के हिंसा की, प्रतिमाएं हैं

कारखाने, कारोबार, लेन देन, कॉलेज की शिक्षा.. जब यह सब अपने अपने नियमों पर चलते हैं, के मंदिर मस्जिद के नियमों पर, तो फिर राजनीति में क्यूँ धर्म को बार बार ठोंसा जाता है? क्या हेतु है उनका जो ऐसा करते हैं? क्या मजबूरी है उनकी? कहीं यही उनका आखरी शास्त्र तो नहीं? कहीं वे मेरी विश्वास का, मेरी धार्मिक परम्परा का लाभ अपने राजनेतिक हेतु से तो नहीं उठा रहे?

खैर मंदिर तो अयोध्या मैं बनेगा. मुझे आज के दिन गुजरात के मंदिरों की, उनके भक्तों की चिंता है. युवक कॉलेज में लाखों रूपए फीस दे कर, चार चार वर्ष बिगाड़ कर बाहर बेरोजगार खड़े हैं. मुझे आज के दिन उनके जीवन की चिंता है. और आप को भी होनी चाहिए. कल को आक्रोश में कहीं यह हिंसक हो गए तो? लूट मार मचा दी तो

मोदी सर्कार ने अनेक अच्छे काम केंद्र मैं किये हैं. उन्हें केंद्र मैं चालु रखना चाहिए. परन्तु उन्हों ने गुजरात में हमारे वोटों का दुरपयोग आवश्य किया. हमारे कंधों पे चडके दिल्ली पहुंचे परन्तु हमें पीछे ढकेल दिया. क्या इतना सब आक्रोश यूँ ही हवा है यहाँ? या फकत कांग्रेस के कारण खड़ा हो सकता था यह? कोंग्रेस की इतनी शक्ति कहाँ?

भाजपा ने कुछ अहंकार भी हमें दिखलाया. हम उन्हें केंद्र में तो रखें परन्तु राज्य स्थर पर कांग्रेस को अवसर दें. खूब ठोकरें खा कर आरही है ना, थोडा डर कर, थोडा हमारा आदर और सम्मान रख कर काम करेगी. उधर भाजपा भी अब थोडा संभल कर केंद्र में काम करेगी. इसी में हम वोटरों की भलाई है. दल अपनी देखते हैं. हमें अपनी देखनी है

यूँ भी विकास या तो हुवा नहीं, या फिर ठीक से नहीं हुवा. वरना इतना बड़ा अमीर ग़रीब में अंतर थोडा ही होता? बेरोज़गारी, मंहगाई, मन्दी ऐसे ही नहीं होतीं. और अगर देश ही गरीब हुवा होता तो फिर इन १५ वर्षों में जब के हम दो चार ही कदम आगे बढ़ पाए, अम्बानी, अदानी जैसे दो हज़ार, बल्कि दो लाख कदम कैसे आगे बढे? हम बुद्धू और वे जीनियस हैं क्या? उन्हें अवसर दिए गए, नीतियों के द्वारा - हमारे भाग के अवसर. पर अब कुछ वर्ष हमारे अवसर हमें ही मिलने चाहिए

कोंग्रेस भी दूध की धूलि तो है नहीं. हमें उसे अवसर इसलिए देना है की वह सबक सीख के आई है. और भाजपा को सबक सिखाना है. परन्तु चुनाव के बाद भी हमें जागृत रहना होगा, और अपने अधिकारों के लिए अवश्य हो तो आन्दोलन भी करना होगा. दल हमें भूल सकते हैं हम उन्हें नहीं!

मुझे विश्वास है की यह मैं आपके ही मन की बात लिख रहा हूँ. परन्तु फकत आप और मैं यह बदलाव ला सकते नहीं. इस के लिए पांच दस मित्रों तक यह सन्देश आपको पंहुचाना होगा, जैसे मैं ने इसे आप तक पहुंचाया

No comments:

Post a Comment